समझते है हमें बेकार कैसे ठीक वैसे ही
मिला हमको नहीं लोहार कैसे ठीक वैसे ही
पिघल तो हैं गए लेकिन अभी आकार लेना है
हमें भी तो मिले आधार कैसे ठीक वैसे ही
दबे पैरों चली है जो वही फिर ख़ाक छानेगी
बटोरेगी कभी अख़बार कैसे ठीक वैसे ही
सलामत है कली गुलदान की है पास मेरे जो
कहीं देते उसे भी मार कैसे ठीक वैसे ही
फ़रिश्ता आ रहा था फिर अचानक से मुड़ा भागा
बना आकर यहाँ लाचार कैसे ठीक वैसे ही
चलो ऐसा करो मुझको लहू के रंग में रंगो
सहोगे क्या क़लम का वार कैसे ठीक वैसे ही
कभी आवाज़ देना फिर दिखाना चाँद सा मुखड़ा
बनूँ तेरे लिए गुलज़ार कैसे ठीक वैसे ही
गले तक आ गई ऐसे दबी सी बात दीवाने
कभी आती नहीं इस बार कैसे ठीक वैसे ही
करे है धर्म का धंधा मरी इंसानियत है सब
कभी लेंगे ख़ुदा अवतार कैसे ठीक वैसे ही
सभी जाने बताओ तुम अमन को जानते हो क्या
कि जानेगा कभी संसार कैसे ठीक वैसे ही
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