यूँ तो वो माहिर-ए-गुफ़्तार कहा जाता है
हाल-ए-दिल है कि न इक बार कहा जाता है
किसलिए दिल को गुनहगार कहा जाता है
इक इबादत है जिसे प्यार कहा जाता है
सच तो ये है कि निगहबाँ है गुल-ओ-ग़ुंचा का
सहन-ए-गुलशन में जिसे ख़ार कहा जाता है
है अगर शक़ कोई तुमको मिरी ख़ुद्दारी पर
तो बता दो किसे ख़ुद्दार कहा जाता है
हम उसी दौर के इन्साँ हैं कि जिसमें अक्सर
हक़-पसंदों को ख़ता-वार कहा जाता है
जिस्म-ओ-ईमान भी इज़्ज़त भी सभी बिकते हैं
सच है दुनिया को जो बाज़ार कहा जाता है
बा-अदब है जो वही आबिद-ए-बादाख़ाना
बे-सलीक़ा है तो मयख़्वार कहा जाता है
है अजब रस्म ये उल्फ़त के शबिस्तानों की
जो है ख़्वाबीदा वो बेदार कहा जाता है
इसकी सुर्ख़ी में है किरदार-ए-जुनून-ए-इन्साँ
ख़ूब बिकता है ये अख़बार कहा जाता है
ऐश-ओ-'इशरत में वो घूमेगा भला क्या कि 'बशर'
वो उसूलों में गिरफ़्तार कहा जाता है
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