एक रोज़ बच्चा से जाँ बड़ा बनूँगा मैं
और तेरे ज़ख़्मों की जाँ दवा बनूँगा मैं
दोस्त तेरा मैं अव्वल दोस्त तेरा मैं आख़िर
जो न बन सका तो फिर जाने क्या बनूँगा मैं
तेरी इस मुहब्बत में जो मैं कुछ न बन पाया
फिर तो क्या बचा मुझमें जान क्या बनूँगा मैं
वैसे तो नहीं कोई इस जहाँ में मेरा पर
जाँ तू छू दे जो मुझको तो तेरा बनूँगा मैं
तेरे इश्क़ में पागल वो बना भी तो इक बार
बोल इक दफ़ा तू जाँ सौ दफ़ा बनूँगा मैं
इस जहाँ में कोई भी जाँ हो या न हो तेरा
हर सफर में इक तेरा बस तेरा बनूँगा मैं
और बना ले वो अपना हूँ नहीं मैं इस क़ाबिल
इसलिए तो बस और बस अब तेरा बनूँगा मैं
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