आज हम वो आदमी हैं जो न होना चाहते थे - Shiv Sagar

आज हम वो आदमी हैं जो न होना चाहते थे
काम हम वो कर रहे जिनको कभी दुत्कारते थे

आदमी वो ही बड़े हैं जो बहस में मात खाकर
त्यागते हैं उस नज़रिये को जिसे वो मानते थे

मशवरे लेना महज़ नाटक हुआ इंसानियत का
लोग सुनते हैं वही जो बात सुनना चाहते थे

खुशनुमा माहौल मुझको इस क़दर क्यूं खल रहा है
राज़दां थे ग़म हमारे हाल वो ही पूछते थे

दूसरों के आशियाने देख मैं ये सोचता हूं
ख्वाब में ऐसे बसेरों में खुदी को देखते थे

क्या ज़रूरत थी तुम्हें मुंह पे दुपट्टा डालने की
सैकड़ों नकली मुखौटों से शकल जो ढांपते थे 

हैसियत की फ़िक्र में जीना भुला डाला सभी ने
बे - तकल्लुफ लोग ही बस ज़िन्दगी को जानते थे

काम के कारण मुकर्रर वक्त रोने का किया है
मुफलिसी के वक्त जब भी मन करे रो डालते थे

- Shiv Sagar
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