तुम बज्म में अब किस्से सुनाती रहना
मैं न रहूँगा अब यहाँ, मुस्कराती रहना
हुनर इक यही था मुझे रोके रखने का
फिक्र भले न करना, पर दिखाती रहना
मैं नही तुमसे आजिज, तन्हाइयों से हूँ
तुमसे कहता तो था, रोज आती रहना
सुन लो,ये दुनिया मेरे जैसी है ही नही
दानिश्ता खुद को इससे बचाती रहना
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