भले इल्ज़ाम किसी दूसरे पर जाता है
आदमी मुफ़्लिसी में भूख से मर जाता है
मेरी आवारगी पर आपको हैरत कैसी
शाख़ से टूट के हर पत्ता बिखर जाता है
मेरे मालिक तुझे तो सब पता है तू ही बता
अब मेरे हिस्से का सब प्यार किधर जाता है
उसे तो फिर मैं पलट कर कभी तकता ही नहीं
इक दफ़ा जो मेरी नज़रों से उतर जाता है
बारहा हादसों ने बदले नहीं हाल तेरे
यार ठोकर से तो पत्थर भी सँवर जाता है
उसके बारे में मैं बस इतना ही कह सकता हूँ
उसकी सूरत से ख़ुद आईना निखर जाता है
इसी से खुश हैं क़बीले के सभी टूटे लोग
दर्द साँसों के ठहरने पे ठहर जाता है
माँ के आँचल से लिपट कर सदा रहता था जो
अब वो बेचारा फ़क़त छुट्टी में घर जाता है
आइना देख के ये राज़ खुला है हम पर
दिल के तूफ़ान का आँखों पे असर जाता है
इन फ़क़ीरों को बताएँ सभी दौलत वाले
ख़ला जो सीने में है पैसों से भर जाता है
सादगी देख के 'धीरेन्द्र' पिघल मत जाना
उसकी आदत है वो वादों से मुकर जाता है
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