तन-ए-तन्हा मुक़ाबिल हो रहा हूँ मैं हज़ारों से
हसीनों से रक़ीबों से ग़मों से ग़म-गुसारों से
उन्हें मैं छीन कर लाया हूँ कितने दावेदारों से
शफ़क़ से चाँदनी रातों से फूलों से सितारों से
सुने कोई तो अब भी रौशनी आवाज़ देती है
पहाड़ों से गुफाओं से बयाबानों से ग़ारों से
हमारे दाग़-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर कुछ मिलते-जुलते हैं
गुलों से गुल-रुख़ों से मह-वशों से माह-पारों से
कभी होता नहीं महसूस वो यूँ क़त्ल करते हैं
निगाहों से कनखियों से अदाओं से इशारों से
हमेशा एक प्यासी रूह की आवाज़ आती है
कुओं से पनघटों से नद्दियों से आबशारों से
न आए पर न आए वो उन्हें क्या क्या ख़बर भेजी
लिफ़ाफ़ों से ख़तों से दुख भरे पर्चों से तारों से
ज़माने में कभी भी क़िस्मतें बदला नहीं करतीं
उमीदों से भरोसों से दिलासों से सहारों से
वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी तअ'ल्लुक़ था
दशहरे से दिवाली से बसंतों से बहारों से
कभी पत्थर के दिल ऐ 'कैफ़' पिघले हैं न पिघलेंगे
मुनाजातों से फ़रियादों से चीख़ों से पुकारों से
Our suggestion based on your choice
As you were reading Shayari by Kaif Bhopali
our suggestion based on Kaif Bhopali
As you were reading Miscellaneous Shayari