तू बता मुझको इज़ाफ़ात कहूँ या न कहूँ
ख़्वाब ताबीर कहूँ मात कहूँ या न कहूँ
देख मासूमियत-ए-रूह हुआ ख़ौफ़ज़दा
मेरे नासूर हैं जज़्बात कहूँ या न कहूँ
बन के हस्सास मुझे चैन से कहने न दिया
चाहिए मुझको रिआयात कहूँ या न कहूँ
सब तजारिब हैं मिरे सब्र के तन्हाई के
भीड़ से अपने बयानात कहूँ या न कहूँ
है मुख़ातिब वो रक़ाबत के तहत औरों से
उनसे मैं अपने शिकायात कहूँ या न कहूँ
मैं नहीं मीर रफ़ी दर्द न ही सोज़ हूँ मैं
ज़ोर मामूली ख़यालात कहूँ या न कहूँ
देखने वालों ने जल्वों के सिवा क्या देखा
मेरी चुप में है छिपे घात कहूँ या न कहूँ
सुब्ह तक नींद ने मुझको है जगाया 'माही'
रात गुज़री जो वही रात कहूँ या न कहूँ
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