मकीं मकाँ मैं नहीं तो निज़ाम किस का था
कि मेज़बाँ के बिना इंतिज़ाम किस का था
तमाम बज़्म हुई अब तो पर्दा-फ़ाश करो
दिया न छूने मुझे जो वो जाम किस का था
क़लम दवात की लागत थी यार मामूली
जो ख़ून दे के चुकाया वो दाम किस का था
किसी की जान गई तो किसी का कुछ न रहा
इरादा नेक तो फ़ेल-ए-हराम किस का था
अगर मगर न किया फ़ैसले में मुंसिफ़ ने
ज़दीद कौन था और इंतिक़ाम किस का था
ग़ज़ल के शेर कहे जिसके नाम 'शाकिर' ने
था रुक्मिणी का या राधा का श्याम किस का था
ज़मीन-ए-दाग़ ग़ज़ल सुन अवाम हैराँ है
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था
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