वफ़ाएँ कमाने को जी चाहता है
कमाकर लुटाने को जी चाहता है
शरीक-ए-सफ़र कर भी लो अब मुझे तुम
कि मिलने-मिलाने को जी चाहता है
सफ़र नाक की सीध का ख़त्म करके
क़दम लड़खड़ाने को जी चाहता है
सजाऊँ तेरे गेसुओं पर मैं गजरा
तुझे फिर लुभाने को जी चाहता है
मुनाफ़ा बहुत पा लिया सब्र रख कर
मिरा अब गँवाने को जी चाहता है
मुझे तुमसे है चाहतों की तवक़्क़ो
ये सुनने-सुनाने को जी चाहता है
उन आँखों की सरहद पे है जो नुमायाँ
वो स्याही चुराने को जी चाहता है
कहीं कर न दूँ मैं जुदा ख़ुदको उन से
यूँ डर कर डराने को जी चाहता है
मुझे मैं पुराना बहुत याद आऊँ
मिरा अब भुलाने को जी चाहता है
नज़र से है ज़ाहिर जो प्यार उनकी ख़ातिर
उन्हीं से छिपाने को जी चाहता है
है वहशत की हद से सिवा इश्क़ मेरा
कि ख़ुद को बचाने को जी चाहता है
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