सबने जहाँ पे काम लिया इंतेक़ाम से - Lalit Pandey

सबने जहाँ पे काम लिया इंतेक़ाम से
हमने वहाँ पे काम लिया एहतिराम से

सबको यहाँ है ग़ैर की ही ज़िंदगी पसंद
हम में भी कोई ख़ुश नहीं अपने कलाम से

हाज़िर हमारी जिनके लिए जान थी कभी
वो लोग काम रखते हैं अब अपने काम से

ज़हराब कैसे बन गया गंग-ओ-जमन का आब
नफ़रत ये कैसे फैल गई राम नाम से

सब लोग उम्र छोड़ मेरी शायरी पढ़ें
रफ़्तार कौन पूछता है ख़ुश-ख़िराम से

- Lalit Pandey
0 Likes

More by Lalit Pandey

As you were reading Shayari by Lalit Pandey

Similar Writers

our suggestion based on Lalit Pandey

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari