सबने जहाँ पे काम लिया इंतेक़ाम से
हमने वहाँ पे काम लिया एहतिराम से
सबको यहाँ है ग़ैर की ही ज़िंदगी पसंद
हम में भी कोई ख़ुश नहीं अपने कलाम से
हाज़िर हमारी जिनके लिए जान थी कभी
वो लोग काम रखते हैं अब अपने काम से
ज़हराब कैसे बन गया गंग-ओ-जमन का आब
नफ़रत ये कैसे फैल गई राम नाम से
सब लोग उम्र छोड़ मेरी शायरी पढ़ें
रफ़्तार कौन पूछता है ख़ुश-ख़िराम से
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