अब तो महँगी ये बहुत देखिए ख़ैरात हुई
और ग़रीबों पे अमीरों की सदा घात हुई
नाम-ए-उल्फ़त की यहाँ जब से शुरूआत हुई
शौक़ वालों की ही ज़ुल्फ़ों में हवालात हुई
इस सदाक़त में हमें ज़हर भी पीना है पड़ा
अपनी हालत भी यहाँ तुझ सी ही सुकरात हुई
झूठे इल्ज़ाम लगाने का चलन भी है अजब
इस ज़माने में शुरू फिर से ख़ुराफ़ात हुई
शहर में उसकी बहुत क़द्र थी लेकिन अब तो
उसके किरदार से दो कौड़ी की औक़ात हुई
तीर नज़रों के चले और न कुछ याद रहा
कैसी फिर वस्ल की हमदम मेरे वो रात हुई
चाल शतरंजी चले जब भी सियासत वाले
भोली जनता की बिना चाल के ही मात हुई
जब से 'मीना' पे ख़ुदा ने ये करम फ़रमाया
बाद मुद्दत के मेरी उनसे मुलाक़ात हुई
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