Meena Bhatt

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@meenabhatt18547

Meena Bhatt shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Meena Bhatt's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Ghazal
तेरे इक़रार या इनकार की मोहताज नहीं
ये मेरी ज़ीस्त तेरे प्यार की मोहताज नहीं

क़त्ल कर दे ये किसी का भी फ़क़त लफ़्ज़ों से
उनकी ग़ज़लें किसी तलवार की मोहताज नहीं

मेरे अख़लाक़ के लाखों है यहाँ पे भी मुरीद
गुल की महकार हूँ किरदार की मोहताज नहीं

ऐसे दीवाने हैं चर्चा है जहाँ में अपना
है ख़बर ऐसी जो अख़बार की मोहताज नहीं

मेरी सच्चाई का सिक्का है ज़माने भर में
ये ख़रीदार या बाज़ार की मोहताज नहीं

ता-क़यामत ही रहेगी ये बुलंदी पे जनाब
शायरी मीर की सरकार की मोहताज नहीं

जीती है जंग उसूलों की सदा ही हमने
ये रियासत किसी हथियार की मोहताज नहीं

मुझको अल्लाह ने बख़्शी ये हुनर की दौलत
ज़िंदगी अब किसी दस्तार की मोहताज नहीं

ख़ुद ही दीवार में चुन जाएगी हँस कर 'मीना'
आशिक़ी मेरी ये दरबार की मोहताज नहीं
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Meena Bhatt
हम हमेशा से ही तक़दीर के मारे निकले
गुल जिन्हें समझा था वो यार शरारे निकले

इल्म की जिनको समझ बैठे इमारत अब तक
वो तो पैसों की उगाही के इदारे निकले

डूबना तय था कि मर्ज़ी थी समुंदर की यही
तेरी रहमत से ख़ुदा हम तो किनारे निकले

सारी ख़ूबी थी तुम्हारी तो तुम्हारी ही सही
जितने भी ऐब थे देखो तो हमारे निकले

हमको उम्मीद थी दिल हार न दें महफ़िल में
झूठे पर आज भी दिलबर के इशारे निकले

धोखा उल्फ़त में मिला हमको तो हर्जा कैसा
वो हमारे नहीं निकले न तुम्हारे निकले

ख़ुदकुशी रोज़ ही करती है जवानी देखो
कैसे माँ बाप के आख़िर ये दुलारे निकले

बेजा बदनाम है 'मीना' ये समंदर देखो
तेरे आँसू तो नमक से भी ये खारे निकले
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Meena Bhatt
अब तो महँगी ये बहुत देखिए ख़ैरात हुई
और ग़रीबों पे अमीरों की सदा घात हुई

नाम-ए-उल्फ़त की यहाँ जब से शुरूआत हुई
शौक़ वालों की ही ज़ुल्फ़ों में हवालात हुई

इस सदाक़त में हमें ज़हर भी पीना है पड़ा
अपनी हालत भी यहाँ तुझ सी ही सुकरात हुई

झूठे इल्ज़ाम लगाने का चलन भी है अजब
इस ज़माने में शुरू फिर से ख़ुराफ़ात हुई

शहर में उसकी बहुत क़द्र थी लेकिन अब तो
उसके किरदार से दो कौड़ी की औक़ात हुई

तीर नज़रों के चले और न कुछ याद रहा
कैसी फिर वस्ल की हमदम मेरे वो रात हुई

चाल शतरंजी चले जब भी सियासत वाले
भोली जनता की बिना चाल के ही मात हुई

जब से 'मीना' पे ख़ुदा ने ये करम फ़रमाया
बाद मुद्दत के मेरी उनसे मुलाक़ात हुई
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