मैं तेरी राह में पलकें बिछा के बैठी हूँ
निगाह-ए-आम से ख़ुद को चुरा के बैठी हूँ
भरोसा है नहीं मुझको यहाँ किसी पर भी
मैं अपनी ख़ुद ही ये मैयत सजा के बैठी हूँ
कभी ख़ुशी की सहर हमने तो नहीं देखी
वजूद ख़ुद ही मैं अपना मिटा के बैठी हूँ
वफ़ा का नाम-ओ-निशाँ अब कहाँ है दुनिया में
मैं अपने इश्क़ की क़ीमत चुका के बैठी हूँ
कहाँ नसीब निवाले हुए थे बच्चों को
उन्हें मैं लोरियाँ गा के सुला के बैठी हूँ
ख़रीद सकता नहीं कोई भी मेरा ईमाँ
ज़मीर इसलिए अपना जगा के बैठी हूँ
ख़िज़ां का कोई हमें ख़ौफ़ अब नहीं मीना
मैं अपने घर में बहारों को ला के बैठी हूँ
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