शम्अ जैसे जला नहीं करते
रोज़ हम रतजगा नहीं करते
अश्क बनके रहे वो आँखों में
ज़िद में लेकिन बहा नहीं करते
राह दुश्वार है मोहब्बत की
ख़ैर हम तो गिला नहीं करते
हम बिछाते बिसात हैं लेकिन
चाल कोई चला नहीं करते
तोड़ देते हैं सब तअल्लुक़ हम
दिल में रंजिश रखा नहीं करते
ज़ब्त करते ज़माने भर के ग़म
घर को जो मय-क़दा नहीं करते
बस गिनाते हो पाप मेरे तुम
छू के क्यों पारसा नहीं करते
राज़ दिल में निहाँ जो तेरे है
जाम-ए-जम से छुपा नहीं करते
कहते 'मीना' तेरे लिए ही ग़ज़ल
महफ़िलों में कहा नहीं करते
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