जुड़ सकूँ ख़ुद से कोई आधार दे
ऐ ख़ुदा साँसों को अब रफ़्तार दे
पा लिया मैंने बदन लेकिन मुझे
इक मुकम्मल ज़िंदगी किरदार दे
डूब जाए तिश्नगी में तिश्नगी
यार सहराओं को भी पतवार दे
हो रहे हैं राब्ते ग़ैरों से अब
हम-नशीं मेरे मिरी अग़्यार दे
आख़िरी तो आख़िरी ही फिर सही
इक दफ़ा ताबीर तो सरकार दे
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