रब्त है मुझको चराग़-ए-शाम से - Ankur Mishra

रब्त है मुझको चराग़-ए-शाम से
थक गया हूँ रहबरी के काम से

लौट आऊँगा अगर आवाज़ दो
इश्क़ है मुझको भी मेरे नाम से

फाड़ कर टुकड़ों में लौटाया मुझे
ख़त किसी ने वो बड़े आराम से

आदतन उसको भुला पाया नहीं
इसलिए डरता हूँ मैं अंजाम से

है बुरी आदत ये लेकिन क्या करें
इश्क़ है तो है किनार-ए-बाम से

- Ankur Mishra
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