सृजन
पेड़ ने अपनी दास्तान किसी पत्ते पर लिखी थोड़ी है
या मिट्टी ने अपने नाम का घर बनाया है कहीं
कि समंदर ने छुपा के रखी हो भविष्य के लिए अपने अंदर कुछ नदियां
नदियां जो आई अपना समय छोड़ कर आई
पत्ते जो टूटे तो कहीं कोई नमी न थी
शायद आसान है प्रकृति होना
शायद मुश्किल है इंसान होना
मुझे अपना प्रकृति होना मंजूर है
मुझे अपना इंसान होना पसंद नहीं
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