मेरे दिल की तड़प का कोई पारावार तो होगा
मिटाएगा अजब ये प्यास कोई यार तो होगा
लगाए फूल के पौधे हैं हमने बीसियों अब तक
हमारे बाद हो बेशक चमन गुलज़ार तो होगा
मैं अबतक जीतता आया हूँ अपनी जंगें सारी पर
मुझे भी जीत लेगा जो कहीं हथियार तो होगा
मुक़दमे हैं कई उनके शहर में मेरे भी यारों
हर इक तारीख़ पर उनका मुझे दीदार तो होगा
मुक़द्दर में जो लिक्खा है वो मुझसे कौन छीनेगा
मेरे बोए पे मेरा अस्ल में अधिकार तो होगा
मिटा देगा ग़रीबी मुफ़लिसी हर शख़्स की इक दिन
वतन में एक दिन पैदा कोई सरदार तो होगा
जहाँ की आर्थिक ख़ाही में भरकर नीर समता का
सभी को एक कर देगा तो फिर दमदार तो होगा
मुझे मालूम है जो दुश्मनी मुझसे है कर बैठा
भले है बेवफ़ा लेकिन वो कुछ दमदार तो होगा
है जिसकी दख़्ल सुब्ह-ओ-शाम मेरे दिल में 'नित्यानन्द'
क़यामत तक मेरे ख़ातिर वो भी बेदार तो होगा
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