तुझे अब मैं भुलाना चाहता हूँ
ख़ुदी से दूर जाना चाहता हूँ
मुहब्बत के नहीं क़ाबिल ये दुनिया
कि शहर-ए- दिल बसाना चाहता हूँ
हक़ीक़त को समझ कर क्या है करना
नफ़स ख़ातिर फ़साना चाहता हूँ
लगा हूँ थकने आँसू यूँ बहाते
जी भर हँसना हँसाना चाहता हूँ
ज़माना रहता रूठा प्रीत से जो
फ़क़त ख़ुद को मनाना चाहता हूँ
As you were reading Shayari by Harpreet Kaur
our suggestion based on Harpreet Kaur
As you were reading undefined Shayari