जिस तरह अपने बदन को साथ लेके चलते हैं दोस्त

  - Sagar Sahab Badayuni

जिस तरह अपने बदन को साथ लेके चलते हैं दोस्त
ऐसा लगता है कफ़न को साथ लेके चलते हैं दोस्त

रोज़ मेरे पास आकर रोते - रोते कहती है वो
आँख में कैसे चुभन को साथ लेके चलते हैं दोस्त

हम अकेले ही निकल आते थे तन्हा पहले घर से
रोज़ काँधों पर घुटन को साथ लेके चलते हैं दोस्त

मैंने आख़िर क्या बिगाड़ा था किसी का लोग मुझसे
किस लिए इतनी जलन को साथ लेके चलते हैं दोस्त

यह सफ़र इस बार मुझको दूर तक ले जाए शायद
तो चलो अपनी थकन को साथ लेके चलते हैं दोस्त

  - Sagar Sahab Badayuni

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