दिल के गुलशन को मिरे जिस ने सजा रक्खा है
मैं ने उस वक़्त को सीने में छुपा रक्खा है
मेरी ख़ामोशी फ़क़त देखने लायक़ ही नहीं
अपना अंदाज़ भी औरों से जुदा रक्खा है
क़द्र होने पे कभी जिस की नहीं की मैं ने
उस की तस्वीर ने दरवेश बना रक्खा है
मैं तसव्वुर में तिरे पास हूँ लेकिन मुझ को
तेरी आँखों ने हक़ीक़त में जगा रक्खा है
हम जहाँ के हैं वहाँ भी है बहुत कुछ लेकिन
आपके शहर में कुछ और मज़ा रक्खा है
तुम मोहब्बत में पड़े रहना मोहब्बत वालों
इस बला ने तो मिरा दिल ही दुखा रक्खा है
हादसा कोई नहीं है न कोई बात सी बात
दिल-ए-नादाँ ने फ़लक सर पे उठा रक्खा है
इस सुख़न ने वो जगह दिल में बना ली सोहिल
मेरे महबूब को कुछ दूर हटा रक्खा है
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