नहीं होता हूँ मेरी जान नहीं होता हूँ
अब मैं पत्थर हूँ परेशान नहीं होता हूँ
बात मेरी ही चुभा करती है मुझ को अक्सर
तेरी बातों पे मैं हैरान नहीं होता हूँ
इसलिए भी नहीं खुल पाता हूँ मैं यारो में
अपनी हालत से मैं अंजान नहीं होता हूँ
ख़ाक होने को हूँ मैं आज मगर देखो तो
ख़ाक होने पे भी वीरान नहीं होता हूँ
मेहरबानी कोई मुझ पर नहीं करता है अब
अब किसी पर मैं भी क़ुर्बान नहीं होता हूँ
देख कर रौनक़-ए-दुनिया ये किया तय मैंने
फैलने का कोई सामान नहीं होता हूँ
अब तसव्वुर में नहीं कोई बसाता मुझ को
अब किसी नज़्म का उनवान नहीं होता हूँ
मैं बनाता हूँ हमेशा के लिए दिल में जगह
चार छह रोज़ का मेहमान नहीं होता हूँ
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