ज़मीं दुबारा बने और ख़ुदा का नाम न हो
के 'कुन' के बाद फिर उस से दुआ सलाम न हो
भटकता फिरता हूँ बेघर जो इन दिनों हर शाम
ये इक उदास परिंदे का इंतक़ाम न हो
ये क्या कि एक ज़रा ख़ुदकुशी का दिल जो करे
तो घर में मौत का थोड़ा भी इंतेज़ाम न हो
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