तमाम दीपक तो बुझ चुके हैं मगर ये दीपक बुझा नहीं है
ये प्यार का दीप है निराला जो अब तलक बुझ सका नहीं है
नज़र उठाना, नज़र झुकाना, नज़र मिलाना, नज़र बचाना
नज़र के कितने हैं राज़ गहरे इन्हीं नज़र को पता नहीं है
जो अपने गेसू में तू लगाए वो फूल मुझको पसंद आए
जो माँग लूँ तो मना ही करके कहेगी तू यूँ मना नहीं है
मुझे सफ़र में जो तुम मिले हो तो रास अपना सफ़र लगा है
तुम्हें बताऊँ तो क्या बताऊँ तुम्हें तो ये भी पता नहीं है
दबी-दबी सी जो बात दिल की हमीं ने सबसे छुपाए रक्खी
पता चला तो सभी ने बोला हमें तो कुछ भी पता नहीं है
Read Full