थे रुके नभ में बादल भी जाते हुए - Anuj Vats

थे रुके नभ में बादल भी जाते हुए
देख बारिश में उसको नहाते हुए

कितनी है ख़ूबसूरत बताऊँ तुम्हें
फूल भी छेड़ते आते जाते हुए

रात देखे उसे प्यार से रात भर
सो गई सुबह उसको जगाते हुए

बात घंटों किसी शाम हो प्यार की
पैर आधे नदी में डुबाते हुए

चाँद जैसा बदन फूल जैसा है दिल
ऐ ख़ुदा क्या था सोचा बनाते हुए

एक धुन थी सुबह उसके होंटों पे रब
दिन मिरा गुज़रा वो गुनगुनाते हुए

और प्यारी मुझे लग रही है सनम
जब से देखा उसे आम खाते हुए

दिल भी पत्थर हुआ हम भी पत्थर हुए
आख़िरी बार सीने लगाते हुए

ज़ख़्म तो हैं क़ुरेदे उसी शेर ने
रो पड़ा जिसको शायर सुनाते हुए

- Anuj Vats
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