"नशेड़ी"
दो घूँट में चढ़ जाए जो, वैसा ये कोई जाम नहीं
मेहनत का नशा कहते है, यह नशा आम नहीं
कोई योद्धा जंग लड़ रहा, किसी के लिए यह खेती है
एक कश मार के देख इसकी, जो पूरी ज़िन्दगी बदल देती है
दिन का तपता सूरज है ये, खुशियों में मचलती शाम नहीं
मेहनत का नशा कहते है, यह नशा आम नहीं
हिम्मत की यहां सलामी देते, हौसले की होती सौगात है
पूर्णिमा का कोई चाँद नहीं ये, अमावस की काली रात है
न कर कोई तीरथ बंदे, इससे पवित्र कोई धाम नहीं
मेहनत का नशा कहते है, यह नशा आम नहीं
लत की चाह लिऐ सर पे, कई काफ़िर परेशान घूम रहे
सँभाल ली जिन्होंने कस्ती अपनी, वो आज आसमान चूम रहे
शूरवीर ही टिक पाते यहाँ, निकम्मो का कोई काम नहीं
मेहनत का नशा कहते है, यह नशा आम नहीं
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