ग़लती से क्या ही उस गली निकले
फिर तो अरमान कितने ही निकले
घर से निकले थे काम से कोई
काम ही काम फिर कई निकले
तेरे चक्कर में इतने रह गए हम
दूध से जितना यार घी निकले
इक नजूमी ने देख मेरा हाथ
बोला, औरत की तो कमी निकले
तेरे कूचे से निकले कुछ लौंडे
है ये हैरत, बड़े दुखी निकले
कोई सुनता नहीं है सड़कों पर
भले ही कोई चीख़ती निकले
महज़ ये तेरे लम्स की तासीर
कि छुअन से ही शाइ'री निकले
सब ने बोला सही नहीं है वो
सब के सब पूरे ही सही निकले
याद आते हैं जब भी गुज़रे दिन
साथ में आँसू और हँसी निकले
नहीं थी तुमसे औरों सी उम्मीद
ख़ैर, तुम भी मगर वही निकले
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