मंज़िल ज़रूरी तो नहीं पर एक दिलकश राह हो
मैं हार कर ज़ाफिर बनूँ दिल जीतने की चाह हो
हर दिल में मैं ज़िंदा रहूँ हस्ती अमर मैं कर सकूँ
बे-मिस्ल हो मेरी क़लम बे-दाग़ वो हमराह हो
मेरे सुख़न का ज़िक्र हो जब मुख़्तसर सा भी कभी
हर शेर दिल पर जा लगे सबके लबों पर आह हो
मेरे सभी अल्फ़ाज़ हो जाए शिफ़ा हर ज़ख़्म पर
आबाद हो हर ग़म भरा दिल बस यही तनख़्वाह हो
हर एक मेरा शेर जैसे आश्ती दरगाह हो
मेरी ग़ज़ल हो पाक जैसे हर लुग़त अल्लाह हो
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