नया सूरज दिखाया जा रहा है
चराग़-ए-शब बुझाया जा रहा है
लगा कर झूट का पर्दा अदा से
यहाँ सच को छिपाया जा रहा है
उसे दिल में बसाया जा चुका है
जिसे क़सदन भुलाया जा रहा है
जहाँ को हम हँसाना चाहते हैं
मगर हमको रुलाया जा रहा है
उसे आग़ोश में भरने लगे हम
ज़माना बिलबिलाया जा रहा है
यही मिट्टी हमारी आबरू है
हमें जिसमें मिलाया जा रहा है
महल तामीर करने थे हमें भी
ग़ज़ल से बस किराया जा रहा है
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