Chaudhary Moinuddin Usmani Arif

Chaudhary Moinuddin Usmani Arif

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Chaudhary Moinuddin Usmani Arif shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Chaudhary Moinuddin Usmani Arif's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Ghazal
हुस्न के गुन गिन सकूँ ये गुन कहाँ रखता हूँ मैं
लब नहीं खुलते मगर ज़ौक़-ए-बयाँ रखता हूँ मैं

लौ जहाँ दी शम्अ ने मैं भी तड़प कर जल बुझा
फ़ितरत-ए-परवाना-ए-आतिश-बजाँ रखता हूँ मैं

फिर मिरे दामन में कोई फूल खिलता ही नहीं
जब ज़रा क़ाबू में चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ रखता हूँ मैं

बे-लुटाए कट नहीं सकती मताअ'-ए-इश्क़-ए-दोस्त
दौलत-ए-बेगाना-ए-ख़ौफ़-ए-ज़माँ रखता हूँ मैं

गुलशन-ए-जम्हूर हो या जन्नत-ए-मज़दूर हो
कुछ अलग इन से ज़मीन-ओ-आसमाँ रखता हूँ मैं

तोड़ देता है तिलिस्म-ए-हर-निज़ाम-ए-पुर-फ़रेब
दिल में जो दर्द-ए-कसाँ-ओ-ना-कसाँ रखता हूँ मैं

ख़िरमन-ए-बातिल उन्हीं से होगा 'आरिफ़' शो'ला-रू
फ़िक्र की हर मौज में वो बिजलियाँ रखता हूँ मैं
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Chaudhary Moinuddin Usmani Arif
फ़ज़ा-ए-क़ुर्ब में बेताबी-ए-दिल बढ़ती जाती है
मोहब्बत की तड़प मंज़िल-ब-मंज़िल बढ़ती जाती है

उधर बारिश मुसलसल जल्वा-हा-ए-बे-महाबा की
अधर महदूद नज़ारे की मुश्किल बढ़ती जाती है

पहुँचता जा रहा हूँ औज-ए-इदराक-ए-हक़ीक़त तक
बराबर हिम्मत-ए-क़त्अ-ए-मनाज़िल बढ़ती जाती है

इधर मेरे लिए चश्म-ए-तलब ख़ूब अंजुमन उन की
उधर बेगानगि-ए-अहल-ए-महफ़िल बढ़ती जाती है

यही मौसम है बर्क़-ओ-आशियाँ के छेड़ का मौसम
बहार आई तो कुछ फ़िक्र-ए-अनादिल बढ़ती जाती है

जलाने को तो परवाना जो पाए सब जला डाले
मगर अफ़्सुर्दगि-ए-शम्अ'-ए-महफ़िल बढ़ती जाती है

तलाश-ए-जू-ए-शीर आसाँ जो अज़्म-ए-कोहकन भी हो
सुहूलत ढूँडने वालों की मुश्किल बढ़ती जाती है

बहार-ए-ताज़ा आने को है फिर 'आरिफ़' गुलिस्ताँ में
बहर-सू नग़्मा-संजि-ए-अनादिल बढ़ती जाती है
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