Rafique Khayal

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Rafique Khayal shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Rafique Khayal's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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रक़्स-ए-नैरंगी है नज़्ज़ारों के बीच
जी रहा हूँ शोबदा-कारों के बीच

एक दुनिया को है लुट जाने का डर
एक हम हैं लुट गए यारों के बीच

शिकवा-ए-जौर-ओ-जफ़ा किस से करूँ
प्यार से महरूम हूँ प्यारों के बीच

मुल्क-ओ-मिल्लत क़ौम-ओ-मज़हब दोस्तो
क्या नहीं बिकता ख़रीदारों के बीच

अज़्मत-ए-हव्वा का इक और आइना
हो गया नीलाम बाज़ारों के बीच

अस्ल रिश्ता तो ज़मीं से है मिरा
याद आया मुझ को सय्यारों के बीच

शौक़-ए-ख़ुद-आराई के हाथों हुआ
इक हयूला क़ैद दीवारों के बीच

या-इलाही रहम करना आज वो
आ गए चल के तलब-गारों के बीच

मेरे दम से ही हुई है रौशनी
दश्त-ओ-सहरा और कोहसारों के बीच

ऐ बहार-ए-अब्र-ए-नौ जल्दी बरस
जल रहे हैं ख़्वाब अँगारों के बीच

मुझ में है मौजूद पर्वाज़-ए-'ख़याल'
मो'तबर हूँ मैं भी फ़नकारों के बीच
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Rafique Khayal
ये सच है बहम उस की मोहब्बत भी नहीं थी
और तर्क मरासिम हों ये हिम्मत भी नहीं थी

उस शख़्स की उल्फ़त में गिरफ़्तार ये दिल था
जिस शख़्स को छूने की इजाज़त भी नहीं थी

कुछ ज़ख़्म-ए-तमन्ना को न था शौक़-ए-मुदावा
कुछ उस को मसीहाई की आदत भी नहीं थी

थे राह-ए-मोहब्बत में पड़ाव कई लाज़िम
क्या कीजिए रुकना मिरी फ़ितरत भी नहीं थी

जो ख़्वाब-ए-शिकस्ता को अता हौसला करती
हासिल वो जुनूँ-ख़ेज़ रिफ़ाक़त भी नहीं थी

हर-चंद कि अफ़्सोस बिछड़ने का हमें था
लेकिन मिलें हम फिर कभी हसरत भी नहीं थी

वहशत में चराग़ाँ में तिरे क़ुर्ब से करता
अफ़्सोस मयस्सर ये सुहूलत भी नहीं थी

कुछ रास्ते दुश्वार मनाज़िल के थे और कुछ
जज़्बों में 'ख़याल' अपने सदाक़त भी नहीं थी
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Rafique Khayal
बुझती शम्अ की सूरत क्यूँ अफ़्सुर्दा खड़े हो खिड़की में
देखो शाम है किस दर्जा दिलकश इस धूप की वर्दी में

वहम-ओ-गुमाँ के सहराओं में फूल खिले तिरी यादों के
और चराग़ाँ दूर तिलक है साँसों की इस वादी में

क़हर-ओ-ग़ज़ब के मिम्बर पर हाथों में लिए कश्कोल-ए-वफ़ा
झाँक रहा था सूरज भी कल ग़ौर से एक सुराही में

दूर खड़ा हो कर मैं इस लिए पहरों देखता रहता हूँ
क़ैद बहुत सी यादें हैं मिरी इस वीरान हवेली में

तहों की प्यास भी सतह पर अब साफ़ दिखाई देती है
ढूँड रहे हैं जाने क्या ये बादल नीली छतरी में

एक है अंदेशा मुझ को कहीं मेरे मर जाने के ब'अद
बेच न दें मेरे घर वाले मिरी क़ीमती ग़ज़लें रद्दी में

रंग और ख़ुश्बू की मानिंद है मेरा सरापा भी साहिब
क़ैद रखेगा आख़िर कब तक वक़्त मुझे यूँ मुट्ठी में

बहर-ए-मोहब्बत के साहिल की सैर बहुत कर ली हम ने
आओ ज़रा अब हम भी देखें बैठ के प्यार की कश्ती में

हिर्स-ओ-हवस के सारे पुजारी एक जगह हैं आज जम'अ
वक़्त की शाख़ पे शायद कोई फूल खिला है जल्दी में
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Rafique Khayal
है दिल में जुनूँ-ख़ेज़ परस्तिश का इरादा
ऐसे में मुनासिब नहीं रंजिश का इरादा

जलने को है तय्यार मता-ए-दिल-ओ-जाँ फिर
अफ़्सोस मगर सर्द है आतिश का इरादा

मिट्टी का घरौंदा बड़ी मुश्किल से बना है
ऐ काश बदल दे कोई बारिश का इरादा

यूँ खुल के सर-ए-आम न मिल मुझ से मिरे दोस्त
दुनिया में है ज़िंदा अभी साज़िश का इरादा

कश्कोल मोहब्बत की तलब फिर भड़क उट्ठी
देखा जो ब-ज़िद उस में नवाज़िश का इरादा

उस ने बड़ा मोहतात रवय्या रखा फिर भी
लहजे से झलकता रहा ख़्वाहिश का इरादा

उस दिल का इलाक़ा सही मेरे लिए ममनूअ'
बदला न ब-हर-हाल रिहाइश का इरादा

है म'अरका-आरा जो 'ख़याल' आज ब-ज़ाहिर
रखता है पस-ए-तैश गुज़ारिश का इरादा
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Rafique Khayal
तहलील मौसमों में कर के अजब नशा सा
फैला हुआ है हर-सू कुछ दिन से रत-जगा सा

मिलते हैं रोज़ उन से हसरत की सरहदों पर
रहता है फिर भी हाइल क्यूँ जाने फ़ासला सा

बरसों के सब मरासिम तोड़े हैं उस ने ऐसे
पल भर में टूट जाए जिस तरह आइना सा

ताज़ा रफ़ाक़तों के पुर-कैफ़ सिलसिलों में
रहता है दिल न जाने अब क्यूँ डरा डरा सा

मेरी बला से चाहत की लाख बारिशें हों
मैं पहले भी था प्यासा मैं आज भी हूँ प्यासा

दोनों में आज तक वो पहली सी तिश्नगी है
फिर वस्ल में नहीं क्यूँ वो लुत्फ़ इब्तिदा सा

तन्हाइयों की ज़द में रहती है रूह मेरी
इस वास्ते हूँ यारो मैं आज कल बुझा सा

टकरा गए जो उन से हम राह में अचानक
इक दास्ताँ हुई फिर वो हादसा ज़रा सा

जिस पर निगाह ठहरी जान-ए-'ख़याल' अपनी
वो अजनबी है लेकिन लगता है आश्ना सा
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Rafique Khayal
हिज्र-ज़दा आँखों से जब आँसू निकले ख़ामोशी से
किसी ने समझा रात समय दो दीप जले ख़ामोशी से

मैं भी आग लगा सकता हूँ इस बरसात के मौसम में
थोड़ी दूर तलक वो मेरे साथ चले ख़ामोशी से

शाम की धीमी आँच में जब ख़ुर्शीद नहा कर सो जाए
मंज़र आपस में मिलते हैं ख़ूब गले ख़ामोशी से

बर्फ़ की परतें जब भी देखूँ मैं ऊँची दीवारों पर
जिस्म सुलगने लगता है और दिल पिघले ख़ामोशी से

चाहत के फिर फूल खिलेंगे आप की ये ख़ुश-फ़हमी है
कपड़े मेरे सामने मौसम ने बदले ख़ामोशी से

दिन के उजालों में शायद मैं ख़ुद से बिछड़ा रहता हूँ
रात की तारीकी में इक ख़्वाहिश मचले ख़ामोशी से

जब भी नादीदा सपनों ने मन आँगन में रक़्स किया
तेरी याद के जुगनू चमके रात ढले ख़ामोशी से

मुल्क-ए-सुख़न के शहज़ादों की सफ़ में खड़ा हो जाएगा
गर तिरे लहजे की धड़कन ख़ुश्बू उगले ख़ामोशी से
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Rafique Khayal
आज वीरानियों में मिरा दिल नया सिलसिला चाहता है
शाम ढलने को है ज़िंदगी की ख़ुदा और क्या चाहता है

धूप की निय्यतों में भड़कने लगे नफ़रतों के अलाव
ऐ घटा इस लिए तुझ को मेरा बदन ओढ़ना चाहता है

नींद की राहतों से नहीं मुतमइन सिलसिला धड़कनों का
फिर दिल-ए-ज़ार रानाइयों में गुँधा रतजगा चाहता है

तेरी नज़दीकियों को पहन के मैं शहज़ादा लगने लगा हूँ
छू के रंगीनियाँ अब के देखूँ तिरी जी, बड़ा चाहता है

परवरिश हौसलों की तमाम उम्र मेरे लहू ने ख़मोशी से की
अब जुनूँ अक्स को देखने के लिए आईना चाहता है

जो हथेली की सारी पुरानी लकीरों को तब्दील कर दे
ऐसा ख़ुश-रंग हर आदमी अब यहाँ सानेहा चाहता है

तुम समुंदर के सहमे हुए जोश को मेरा पैग़ाम देना
मौसम-ए-हब्स में फिर कोई आज ताज़ा हवा चाहता है

उम्र भर आँसुओं से जो धोता रहा चेहरा महरूमियों का
वो तिरी रहमतों से मिरे मौला अब के जज़ा चाहता है

नाज़ था जिस को मेरी रिफ़ाक़त के हर लम्हा-ए-मुख़्तसर पर
आज महसूस ऐसा हुआ है कि वो फ़ासला चाहता है
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Rafique Khayal
ज़िंदा हैं मिरे ख़्वाब ये कब याद है मुझ को
हाँ तर्क-ए-मोहब्बत का सबब याद है मुझ को

तफ़्सील-ए-इनायात तो अब याद नहीं है
पर पहली मुलाक़ात की शब याद है मुझ को

ख़ुश्बू की रिफ़ाक़त का नशा टूट रहा है
लेकिन वो सफ़र दाद-तलब याद है मुझ को

अब शाम के हाथों जो गिरफ़्तार है सूरज
दोपहर में था क़हर-ओ-ग़ज़ब याद है मुझ को

ऐवान मिरी रूह के रौशन किए जिस ने
वो शोख़ी-ए-यक-जुम्बिश-ए-लब याद है मुझ को

कुछ दिन से मुक़य्यद हूँ मैं वीराना-ए-जाँ में
हालाँकि कोई शहर-ए-तरब याद है मुझ को

क्यूँ याद दिलाते हो मुझे चाँदनी रातें
पैमान-ए-वफ़ा तुम से है सब याद है मुझ को

वो शख़्स 'ख़याल' आज जो रू-पोश है मुझ में
थे उस में कमालात अजब याद है मुझ को
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Rafique Khayal

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