"उससे कहना"
उससे कहना बिछड़ गए तो क्या
याद तो अब भी आती है
उसके लौट आने की उम्मीद अब भी नज़र आती है
आधी रात को चाँद जब खिड़कियों से झाँकता है
मैं कुछ भी लिखने बैठता हूॅं मगर मेरा हाथ काँपता है
पता नहीं क्यों एक कमी-सी रहती है
ये निगाहें उस एक तस्वीर पर थमी-सी रहती है
पुराने मैसेज में लबालब भरी मोहब्बत देख कर
पिघल जाता है पत्थर वरना तो इस दिल पे
बर्फ जमी-सी रहती है
गुलज़ार से कहना जैसी उसकी एक रात थी वैसी
यहाँ हर रोज़ आँख में नमी-सी रहती है
मेरी तन्हाई और उसकी बे-ए'तिनाई
मेरी अधूरी छूटी पड़ी ग़ज़लें और नज़्में
वैसे कुछ हिज्र के मुकम्मल शेर हैं
बुझे पड़े दिए हैं जली हुई अँधेर है
उसके नाम लिखे गए ख़त
मेरे घर की वीरान पड़ी छत
तस्वीर से उसकी ठोड़ी का तिल
और मेरा बिखरा हुआ दिल
और वो याद है एक मुरझाया हुआ गुलाब था ना
मेरा एक टूटा हुआ ख़्वाब है ना
ये सभी रोज़ मेरे बगल में आ कर खड़े हो जाते हैं
और मुझसे कहते हैं
उससे कहना
दिल टूट गया तो क्या अब भी धड़कता है
एक शख़्स तेरे शहर की गलियों में भटकता है
ये आँखें उसकी मुंतज़िर हैं आज भी
जैसे कल थे मुहाजिर हैं आज भी
'इश्क़-ए-सादिक़ तो लापरवाह है ना
इश्क़-ए-ना-मुराद ही सही मगर ख़ुदा गवाह है ना
इश्क़-ए-मजाज़ी ब-निस्बत इश्क़-ए-इलाही 'अज़ीम है
क्या तुमसे मोहब्बत करना जुर्म-ए-'अज़ीम है
उससे पूछना था
उससे पूछना था बहुत कुछ
उससे कहना था बहुत कुछ
कह नहीं पाया
उससे कहना
उससे बिछड़ के मैं रह नहीं पाया
ऐसा नहीं है भुलाना नहीं चाहता हूॅं चाहता हूॅं
ऐसा नहीं उसके सिवा किसी से मिलना मिलाना
नहीं चाहता हूॅं चाहता हूॅं
ऐसा भी नहीं दिखावा करने का शौक़ है
मोहब्बत में आशिक़ बनने का शौक़ है
मैं तो चाहता हूॅं हर फूल को मसल देना मगर
बस दिल नहीं करता
उससे कहना
उसके बिना चाँद तारे जुगनू फूल ख़ुशबू क्या
उस मह-रू के सामने कोई ख़ुश-रू क्या
सब मुक़द्दस होता है मोहब्बत में इश्क़ में बा-वज़ू क्या
एक उसी की ख़्वाहिश थी इस दिल को
जो पूरी न हो सकी अब तो जो मिल जाए ठीक
अब हस्ब-ए-आरज़ू क्या उससे कहना
मगर फिर भी दिल के एक छोटे से कोने में
एक ख़्वाहिश ज़िंदा है
उसको अपना कह के पुकारने की
हर शब उसकी नज़र उतरने की
कहने की उस से कि
तुमसे मोहब्बत है मुझे
तुम्हारी ज़रूरत है मुझे
उससे कहना मैं ही नहीं
उसको खिड़की दर-ओ-दीवार सब याद करते हैं
उसके बारे में रात-रात भर पागल बात करते हैं
मुझसे ज़्यादा क़लम टेबल पंखा रस्सी सब रोते हैं
वो भी उसी की यादों में अक्सर खोए हुए होते हैं
वो शर्ट जो उसे पसंद थी, नहीं
शर्ट को वह पसंद थी, उसके जाते ही रंग छोड़ दिया इसने
वो इत्र जो उसने दिया था लगाने को कहती थी
अब कहीं लगा के जाता हूॅं तो ख़ुशबू नहीं आती
वो ख़ुशबू इत्र की नहीं थी वह बहाना था
महकती तो वो थी मेरे बदन में
वो घड़ी जो उसने दी थी रुक गई उसी दिन
जिस दिन मैं वह बिछड़े थे
ये दिल-घर उसका जो उसने सजाया था
और फिर तोड़ कर गई थी
उससे कहना उसे देखने कई किराए दार आए थे
काफ़ी अच्छी रक़म दे रहे थे
मगर रहने ही नहीं दिए इसकी दीवारें चिल्ला पड़ी मुझपर
हर एक मेरी चीज़ मेरी नहीं है अब
उससे कहना सब उसका है अब
सब उसी को चाहते हैं
मुझसे ज़्यादा इन्हें उसकी आदत लग गई है
उससे कहना
आज भी उसकी तलाश रहती है
वो नहीं मगर उसकी याद पास रहती है
किसी नए जोड़े को देख कर वह यहाँ होती
मेरे कहने से पहले मेरी तन्हाई काश कहती है
उससे कहना ये कोई इमोशनल ब्लैकमेलिंग नहीं है
बस बताना था
आज-कल मेरी तबीयत भी बहुत ख़राब रहती है
आँखों में प्यास और होंठों पर शराब रहती है
बहन तो गुज़र ही गई याद होगा
पिताजी थोड़े टूट गए हैं घुटने जाम हो जाते हैं
मम्मी का जी थोड़ा और कच्चा हो गया है और
तो बस थोड़ी ख़राश रहती है
कुछ अच्छा नहीं बनाया सालों से तब से
बस जीने के लिए खाते हैं
मुझे बड़े डरावने ख़्वाब आते हैं
तुम तो कभी निकलती ही नहीं ज़ेहन से
पूछना था मैं, बहन, माँ, भाई कोई भी, कभी भी
याद आते हैं?
उससे कहना
किसी रोज़ कहीं भी कभी भी अगर मिलने आए तो
लौट के मत जाना अगर जाना हो तो मत आना
मेरे ये दिल के ज़ख़्म भर भी सकते हैं
मगर एक और चोट से हम मर भी सकते हैं
कोई पस-ओ-पेश ही नहीं इस बात पर
तेरा दीदार ज़रूरी है तेरे साथ से
इसलिए ही तो तेरी तस्वीर है आज भी
आँसू-ओ-ख़लिश तक़दीर थे कल भी तक़दीर हैं आज भी
कभी याद आए तो हाल पूछ लेना
बुरा ही सही मेरे बारे में सोच लेना
वैसे तो मैं ख़ुद ही जब याद बन जाऊॅंगा
तब देखना बहुत याद आऊॅंगा
उससे कहना
बिछड़ गए तो क्या याद तो अब भी आती है
लो फिर उसकी याद आ गई
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