उसके जितना तो कभी अच्छा नहीं था
मेरे चेहरे पे कोई चेहरा नहीं था
बे नसीबी है नहीं मेरी तो क्या है
खोया है वो जो अभी पाया नहीं था
उस तरफ़ वो सबको छाती से लगाती
इस तरफ़ मैंने कोई देखा नहीं था
उसके बिन ही जी रहा हूॅं मैं अभी तक
जिसके बिन मुझको कभी मरना नहीं था
तुम अगर मुझसे निभा लेती मोहब्बत
इतना घाटे का तो ये सौदा नहीं था
जब किसी ने ओ ख़ुशी कह के पुकारा
एक पल को मेरा दिल धड़का नहीं था
बिन ख़ता भी मैंने तो खाई है गाली
बद-मआशी का मेरा सपना नहीं था
राम से क्यों हारा लंका का वो रावण
उसकी जानिब उसका इक भैया नहीं था
ज़िंदगी जिसके लिए मैंने की ग़ारत
वो मगर मुझसे कभी बिछड़ा नहीं था
उसके मेरे हाल भी इक से थे क़िस्मत
उसपे मतला तो था पर मक़्ता नहीं था
उसका मैं हो के रहा सारा ही ता-उम्र
मेरा जो त्यागी कभी आधा नहीं था
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