Jauhar Nizami

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Jauhar Nizami shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Jauhar Nizami's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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  • Nazm
मस्त हवा जब सावन की अंगड़ाई ले कर आती है
और फ़लक पर काली काली बदली जब छा जाती है
छम-छम छम-छम नन्ही बूँदें इठला कर जब आती हैं
प्रेम की हल्की तानों में रावी की लहरें गाती हैं
भीगे भीगे सावन में जब कोयल कूक सुनाती है
पायल की झंकारों की जब धीमी आहट आती है
उस वक़्त किनारे रावी के इक दिलकश मंज़र होता है
पिछले पहर जब धीमी धीमी ठंडी हवाएँ आती हैं
गाँव की सुंदर आँखों वाली पानी भरने जाती हैं
प्रेम के मंदिर में गंगा-जल कोई चढ़ाने जाती है
देवी के चरनों में कोई मीठे बोल सुनाती है
रावी की लहरों में छुप कर मुरली कोई बजाता है
जंगल की ख़ामोश फ़ज़ा में अमृत-रस बरसाता है
उस वक़्त किनारे रावी के इक दिलकश मंज़र होता है
सब्ज़ा फूल पतावर ग़ुंचे और नग़्मे सो जाते हैं
धरती पर आकाश से जब मा'सूम फ़रिश्ते आते हैं
शाम हुई मंदिर में देखो घंटे लोग बजाते हैं
रात हुई बैलों को ले कर हरवाहे अब जाते हैं
हल्की हल्की बूंदों में जब दुनिया सावन गाती है
हरी-भरी शाख़ों में छुप कर कोयल कूक सुनाती है
कुछ दिन के बिछड़े हुए साथी हँस के गले जब मिलते हैं
चाँदनी रातों में ग़ुंचे जब चटक चटक कर खिलते हैं
उस वक़्त किनारे रावी के इक दिलकश मंज़र होता है
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ज़हे-नशात ज़हे-हुस्न इज़्तिराब तिरा
नज़र की छेड़ से बजता था जब रबाब तिरा
न अब वो कैफ़ की रातें न वो बहार के दिन
कि महव-ए-नाज़ न था हुस्न-ए-ला-जवाब तिरा
दम-ए-विदाअ' वो रंगीं उदासियाँ तेरी
हुनूज़ याद है वो दीदा-ए-पुर-आब तिरा
वो झूम झूम के अब्र-ए-बहार का आना
वो बिजलियों की तड़प और वो इज़्तिराब तिरा
वो इब्तिदा-ए-मोहब्बत वो चाँदनी रातें
वो सेहन-ए-बाग़ में हँसता हुआ शबाब तिरा
सँभल सँभल के मिरी सम्त वो निगाह तिरी
बचा बचा के नज़र मुझ से वो ख़िताब तिरा
मिरा हरीम-ए-तमन्ना था आसमाँ से बुलंद
इस आसमाँ पे चमकता था आफ़्ताब तिरा
अभी नज़र में है राज़-ओ-नियाज़ का आलम
वो मेरी इज्ज़-ए-मोहब्बत वो पेच-ओ-ताब तिरा
कभी सितम के लिए और कभी करम के लिए
निगाह-ए-शोख़ में डूबा हुआ हिजाब तिरा
मिरा सवाल ब-क़द्र-ए-हुजूम-ए-शौक़-ए-निहाँ
हया की आड़ में छुपता हुआ जवाब तिरा

हनूज़ याद है 'जौहर' को ऐ निगार-ए-जमील
वो इल्तिफ़ात के पर्दे में इज्तिनाब तिरा
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फिर दिल है आज ग़र्क़-ए-तमन्ना तिरे लिए
आ मुज़्तरिब है इश्क़ की दुनिया तिरे लिए
वहशत बरस रही है गुलिस्ताँ में हर तरफ़
है चाक-चाक दामन-ए-सहरा तिरे लिए
तेरी निगाह-ए-मस्त की मुश्ताक़ है बहार
साग़र में है ये लर्ज़िश-ए-सहबा तिरे लिए
मुद्दत से आरज़ू-ए-तमाशा है सोगवार
मुद्दत से महव-ए-दर्द है दुनिया तिरे लिए
दिल और चश्म-ए-शौक़ की मंज़िल के दरमियाँ
वा हे मसर्रतों का दरीचा तिरे लिए
ये चाँदनी ये मौज-ए-रवाँ और ये दो जाम
आ देख एहतिमाम है क्या क्या तिरे लिए
ये सब्ज़ा-ए-लतीफ़ ये भीगी हुई हवा
इक गुल्सिताँ है साहिल-ए-दरिया तिरे लिए
'जौहर' कहाँ हयात की ये कश्मकश कहाँ
है मेरी ज़िंदगी की तमन्ना तिरे लिए
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