Parvez Shahidi

Parvez Shahidi

@parvez-shahidi

Parvez Shahidi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Parvez Shahidi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

20

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
  • Nazm
फ़सुर्दा है इल्म हर्फ़-हा-ए-किताब भी बुझ के रह गए हैं
है राख ही राख मदरसों में निसाब भी बुझ के रह गए हैं

दिलों में शोले सिसक रहे हैं जमी हुई बर्फ़ है लबों पर
सवाल भी बुझ के रह गए हैं जवाब भी बुझ के रह गए हैं

नहीं है महफ़िल में कोई गर्मी हुए हैं दिल सर्द मुतरीबों के
धुआँ निकलता है उँगलियों से रुबाब भी बुझ के रह गए हैं

चराग़-ए-साग़र से लौ लगा कर न पाया कुछ भी फ़सुर्दगी ने
कि ग़म तो ये है कि शोला-हा-ए-शराब भी बुझ के रह गए हैं

गिरफ़्त-ए-तूफ़ाँ में आ गया है ख़याल का शोला-पोश दामन
रहे हक़ीक़त ही जिन से रौशन वो ख़्वाब भी बुझ के रह गए हैं

बुझा बुझा सा है क़ल्ब-ए-सहरा बुझी बुझी सी है रेग-ए-ताबाँ
फ़रेब खाएगी तिश्नगी क्या सराब भी बुझ के रह गए हैं

है मुन्फ़इल ज़ौक़-ए-शोला-चीनी अरक़ अरक़ है जबीन-ए-ख़िर्मन
कहाँ से आएँगे बर्क़-पारे सहाब भी बुझ के रह गए हैं
Read Full
Parvez Shahidi
तुम ख़ुनुक जज़्बा हो बे-ताबी-ए-फ़न क्या जानो?
क्या गुज़रती है दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न क्या जानो?

ख़ून है दिल में तुम्हारे अभी अफ़्सुर्दा-ख़िराम
सुर्ख़ क्यूँ होते हैं रुख़्सार-ए-चमन क्या जानो?

मैं हूँ कितने क़द-ओ-गेसू के जहाँ का मे'मार
सरगिराँ मुझ से हैं क्यूँ दार-ओ-रसन क्या जानो?

तुम तो करते हो मिरी क्लिक-ए-सुख़न को पाबंद
कौन है कातिब-ए-तक़दीर-ए-वतन क्या जानो?

मैं कि हूँ ख़ाक-नशीं दुश्मन-ए-जाम-ए-ख़ुसरव
मैं ही पीता हूँ मय-ए-तख़्त-फ़गन क्या जानो?

तुम को है नाज़ कि जकड़े हुए हो वक़्त के पाँव
क्यूँ बदलता है ज़माने का चलन क्या जानो?

तुम समझते ही नहीं अहल-ए-गुलिस्ताँ की ज़बाँ
मुझ से क्या कहते हैं ये सर्व-ओ-समन क्या जानो?

तुम तो हो बाइस-ए-अफ़्सुर्दगी-ए-हाल-ए-हुनर
मैं हूँ ताबानी-ए-मुस्तक़बिल-ए-फ़न क्या जानो?

जिन को तुम देते हो शोरीदा-सरी का इल्ज़ाम
हैं वही ख़ाक-बसर ताज-शिकन क्या जानो?
Read Full
Parvez Shahidi
छुप कर न रह सके निगह-ए-अहल-ए-फ़न से हम
महफ़िल में झाँकते हैं नक़ाब-ए-सुख़न से हम

कम-बख़्त ढूँढती है मोहब्बत में फ़ल्सफ़ा
तंग आ गए हैं अक़्ल के दीवाना-पन से हम

तलख़ी-ए-ज़िंदगी में भी पाने लगे मिठास
आजिज़ हैं अपनी फ़ितरत-ए-काम-ओ-दहन से हम

पैदा किया हुआ है हमारा ही सब फ़रोग़
बेगाना कुछ नहीं हैं तिरी अंजुमन से हम

ऐ महव-ए-नाज़ और नया कोई इम्तिहाँ
उकता गए हैं बाज़ी-ए-दार-ओ-रसन से हम

इक ज़र्रा ही सही मगर ऐ आफ़्ताब-ए-नाज़
सज्दे करा रहे हैं तिरी हर किरन से हम

देते रहे फ़रेब-ए-मनाज़िर के बुत-कदे
देखा किए तुझे निगह-ए-बुत-शिकन से हम

उठना हमारा था कि सभों की नज़र उठी
कुछ जैसे ले चलूँ हूँ तिरी अंजुमन से हम

उभरा नहीं है सादगी-ए-गिर्या का मज़ाक़
महफ़िल ये चाहती है कि रोएँ भी फ़न से हम
Read Full
Parvez Shahidi
ज़िंदगी ने फ़स्ल-ए-गुल को भी पशेमाँ कर दिया
जिस बयाबाँ पर नज़र डाली गुलिस्ताँ कर दिया

तू ने ये क्या ऐ सुकूत-ए-शिकवा-सामाँ कर दिया
दिल की दिल ही में रही उन को पशेमाँ कर दिया

शुक्रिया ऐ मौसम-ए-गुल पास-ए-वहशत है यही
गुल्सिताँ को तू ने हम-दीवार-ए-ज़िंदाँ कर दिया

कितने अफ़्साने बना कर रख लिए थे शौक़ ने
यूँ नक़ाब उल्टी हक़ीक़त ने कि हैराँ कर दिया

किस क़दर मज़बूत निकले तेरे दीवाने के हाथ
शाम-ए-ग़म को जब निचोड़ा सुब्ह-ए-ताबाँ कर दिया

फूल बरसाए हैं क्या क्या तेग़-ए-ख़ूँ-आशाम ने
तुम ने शहर-ए-गुल-अज़ाराँ को गुलिस्ताँ कर दिया

सीना-ए-सनअत में भर कर अपने दिल का इज़्तिराब
आहन-ओ-फ़ौलाद को मैं ने ग़ज़ल-ख़्वाँ कर दिया
Read Full
Parvez Shahidi
शिकायत कर रहे हैं सज्दा-हा-ए-राएगाँ मुझ से
न देखा जाएगा अब सू-ए-संग-ए-आस्ताँ मुझ से

है कल की बात शर्मिंदा था हुस्न-ए-राएगाँ मुझ से
ये जल्वे माँगते थे इक निगाह-ए-मेहरबाँ मुझ से

नज़र रख कर क़नाअत कर रहा हूँ मैं तसव्वुर पर
ये जल्वे चाहते हैं और क्या क़ुर्बानियाँ मुझ से

मोहब्बत मेरी बढ़ कर आ गई है बद-गुमानी तक!
मज़ा आ जाए हो जाएँ जो वो भी बद-गुमाँ मुझ से

मशिय्यत चाहती थी मुझ को महव-ए-ख़्वाब में रखना
मैं क्या करता न रोकी जा सकीं अंगड़ाइयाँ मुझ से

करिश्मे क़ुदरत-ए-मुतलक़ के हैं बाला-ए-शक लेकिन
मैं जब जानूँ कि बढ़ कर छीन लें मजबूरियाँ मुझ से

जुनूँ-जौलान-ए-दश्त-ए-जुस्तुजू हूँ क्या ख़बर इस की
मिली मंज़िल कहाँ मुझ को छुटी मंज़िल कहाँ मुझ से
Read Full
Parvez Shahidi
ख़ामोशी बोहरान-ए-सदा है तुम भी चुप हो हम भी चुप
सन्नाटा तक चीख़ रहा है तुम भी चुप हो हम भी चुप

तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर के ज़बाँ से दिल का जीना मुश्किल है
ये कैसा आहंग-ए-वफ़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप

दिल वालों की ख़ामोशी ही बार-ए-समाअत होती है
बे-आवाज़ी कर्ब-ए-फ़ज़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप

भेस बदलती आवाज़ें ही शाम-ओ-सहर कहलाती है
वक़्त का दम क्या टूट गया है तुम भी चुप हो हम भी चुप

सकते तक अब आ पहुँचा है बढ़ते बढ़ते कर्ब-ए-सुकूत
होंटों पर क्या वक़्त पड़ा है तुम भी चुप हो हम भी चुप

कैसी नर्मी कैसी सख़्ती लहजे की क्या बात करें
फ़िक्र ही अब ग़म-कर्दा सदा है तुम भी चुप हो हम भी चुप

जब तक राह-ए-वफ़ा थी सीधी ज़ोर-ए-बयाँ था ऐश-ए-सफ़र
शायद कोई मोड़ आया है तुम भी चुप हो हम भी चुप
Read Full
Parvez Shahidi
मंज़िल भी मिलेगी रस्ते में तुम राहगुज़र की बात करो
आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले क्यूँ अंजाम-ए-सफ़र की बात करो

ज़ालिम ने लिया है शर्मा कर फिर गोशा-ए-दामाँ चुटकी में
है वक़्त कि तुम बेबाकी से अब दीदा-ए-तर की बात करो

आया है चमन में मौसम-ए-गुल आई हैं हवाएँ ज़िंदाँ तक
दीवार की बातें हो लेंगी इस वक़्त तो दर की बात करो

है तेज़ हवा हिलता है क़फ़स ख़तरे में पड़ी है हर तीली
फ़रियाद-ए-असीरी बंद करो अब जुम्बिश-ए-पर की बात करो

क्यूँ दार-ओ-रसन के साए में मंसूर की बातें करते हो
रखना है जो ऊँचा सर अपना तो अपने ही सर की बात करो

क्यूँ अहल-ए-जुनूँ अर्बाब-ए-ख़िरद की महफ़िल में ख़ामोश रहें
वो अपने हुनर की बात करें तुम अपने हुनर की बात करो

क्या बरबत-ओ-दफ़ दम तोड़ चुके मौत आ गई क्या हर नग़्मे को
तुम मुतरिब-ए-जाम-ओ-मीना हो क्यूँ तेग़ ओ सिपर की बात करो
Read Full
Parvez Shahidi
जलते रहना काम है दिल का बुझ जाने से हासिल क्या
अपनी आग के ईंधन हैं हम ईंधन का मुस्तक़बिल क्या

बोलो नुक़ूश-ए-पा कुछ बोलो तुम तो शायद सुनते हो
भाग रही है राहगुज़र के कान में कह कर मंज़िल क्या

डूबने वालो! देख रहे हो तुम तो कश्ती के तख़्ते
देखो देखो ग़ौर से देखो दौड़ रहा है साहिल क्या

अन-पढ़ आँधी घुस पड़ती है तोड़ के फाटक महलों के
''अंदर आना मनअ है'' लिख कर लटकाने से हासिल क्या

क़त्ल-ए-वक़ार-ए-इश्क़ का मुजरिम जहल-ए-हवस-काराँ ही नहीं
नंगे इस हम्माम में सब हैं आलिम क्या और जाहिल क्या

परवाने अब अपनी अपनी आग में जलते रहते हैं
शोलों के बटवारे से था मक़्सद-ए-शम्-ए-महफ़िल क्या

टूटी धनक के टुकड़े ले कर बादल रोते फिरते हैं
खींचा-तानी में रंगों की सूरज भी है शामिल क्या
Read Full
Parvez Shahidi
साग़र-ए-सिफ़ालीं को जाम-ए-जम बनाया है
फैल कर मिरे दिल ने ''मैं'' को ''हम'' बनाया है

हम-सफ़र बनाया है हम-क़दम बनाया है
वक़्त ने मुझे कितना मोहतरम बनाया है

नाज़ है ख़लीली को हुस्न-ए-नक़्श-ए-सानी पर
गरचे आज़री ही ने ये सनम बनाया है

बे-कसी-ए-दिल अपनी दूर की है यूँ मैं ने
दूसरों के ग़म को भी अपना ग़म बनाया है

ज़िंदगी की मौसीक़ी क्या है हम समझते हैं
साज़ के तलव्वुन को ज़ेर-ओ-बम बनाया है

ज़ुल्फ़ की तरह इस को बस सँवारते रहिए
ज़िंदगी को फ़ितरत ने ख़म-ब-ख़म बनाया है

मैं ने ज़र्रे ज़र्रे को मुस्कुराहटें दी हैं
तुम ने हर सितारे को चश्म-ए-नम बनाया है

मुद्दई-ए-जिद्दत है तेरी फ़िक्र ऐ ज़ाहिद!
मय-कदे की ईंटों से क्यूँ इरम बनाया है

बुत हज़ारों तोड़े हैं कितने टुकड़े जोड़े हैं
ज़िंदगी ने जब जा कर इक सनम बनाया है
Read Full
Parvez Shahidi
सुना है उन के लब पर कल था ज़िक्र-ए-मुख़्तसर मेरा
तसव्वुर दे रहा है तूल इसी को किस क़दर मेरा

ये दिल-सोज़ी-ए-दर्द-ए-आदमिय्यत क्या क़यामत है
किसी की आँख से आँसू बहें दामन हो तर मेरा

तसव्वुर मय-कदे का मुश्तरक हो किस तरह नासेह?
ख़िरद साग़र-शिकन तेरी जुनूँ पैमाना-गर मेरा

यही आलम रहा गर शौक़ की आईना-बंदी का!
तो गुम हो जाएगा जल्वों में शौक़-ए-ख़ुद-निगर मेरा

ख़ुदा-रा कुछ तो नाज़-ए-सर-बुलंदी रहम कर मुझ पर
तिरे बार-ए-गिराँ से अब झुका जाता है सर मेरा

उलझ कर रह गई थी अक़्ल तो पर्दे के तारों में
बड़ी मुश्किल से काम आया जुनून-ए-पर्दा-दर मेरा

नहीं 'परवेज़' कुछ अपने ही अश्कों की नमी इस में
बना है आस्तीन-ए-दोस्ताँ दामान-ए-तर मेरा
Read Full
Parvez Shahidi
ये सुम्बुल-ओ-नस्रीं मेरे हैं ये सेहन-ए-गुलिस्ताँ मेरा है
मैं अज़्म-ए-नुमू-ए-गुलशन हूँ इनआम-ए-बहाराँ मेरा है

मैं फ़र्क़ बताऊँ किस किस को एहसास की जब तौफ़ीक़ नहीं
कैफ़-ए-ग़म-ए-दौराँ मेरा है लुत्फ़-ए-ग़म-ए-जानाँ मेरा है

ऐ मौसम-ए-गुल तशवीश न कर अर्बाब-ए-ख़िरद की बातों पर
ये पंजा-ए-वहशत मेरे हैं हर तार-ए-गरेबाँ मेरा है

अहबाब तबाही पर मेरी मग़्मूम न हों मातम न करें
ये गर्दिश-ए-दौराँ मेरी है वो फ़ित्ना-ए-दौराँ मेरा है

ऐ नासेह-ए-मुशफ़िक़! रहने दे अश्कों पे मिरे तन्क़ीद न कर
ये दीदा-ए-गिर्यां मेरे हैं वो गोशा-ए-दामाँ मेरा है

तारीख़-ए-चमन लिखने के लिए क्यूँ हाथ बढ़े हैं गुलचीं के
आग़ाज़-ए-गुलिस्ताँ मेरा था अंजाम-ए-गुलिस्ताँ मेरा है

शिकवों की ज़फ़र-याबी पे मुझे अहबाब मुबारकबाद न दें
वो नीची निगाहें मेरी हैं वो हुस्न-ए-पशीमाँ मेरा है
Read Full
Parvez Shahidi