चल तेरे बस में नहीं तू याद आना छोड़ दे
वैसे तेरे हक़ में होगा गर रुलाना छोड़ दे
बात अबकी बार मेरे रूठने की थी मगर
तुझसे ये किसने कहा मुझको मनाना छोड़ दे
पास बैठो हाल पूछो और फिर साया करो
आदमी जब छोटी-मोटी चोट खाना छोड़ दे
मैंने ही ग़मख़्वार से जब कोई दुख बाँटा नहीं
फिर भला क्यूँ वो भी मेरा दिल दुखाना छोड़ दे
सौंप दी है मुझको जब तूने मेरी ये जिंदगी
मेरी भी अब इल्तिजा है हक़ जताना छोड़ दे
फिर तेरे उस दोस्त ने इक और को धोखा दिया
कम से कम 'रजनीश' अब तो सर उठाना छोड़ दे
Read Full