S. Nooruddin Anwar Bhopali

S. Nooruddin Anwar Bhopali

@s-nooruddin-anwar-bhopali

S. Nooruddin Anwar Bhopali shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in S. Nooruddin Anwar Bhopali's shayari and don't forget to save your favorite ones.

Followers

0

Content

4

Likes

0

Shayari
Audios
  • Ghazal
लिपट कर सो रहा हूँ लज़्ज़त-ए-दर्द-ए-मोहब्बत से
ये इशरत बा'द-ए-मुर्दन ख़ाक में मिलती है क़िस्मत से

सरापा शेर-ओ-नग़्मा बन गया किस की इनायत से
मिरा दिल अब इबारत है मोहब्बत ही मोहब्बत से

वो फ़िरदौस-ए-बरीं दर-अस्ल दोज़ख़ से भी बद-तर है
जो हासिल की गई हो ग़ैर के लुत्फ़-ओ-इनायत से

अगर फ़ुर्क़त ही फ़ुर्क़त हो तो फिर फ़ुर्क़त नहीं रहती
मैं तेरे वस्ल का भी लुत्फ़ उठा लेता हूँ फ़ुर्क़त से

तमन्ना है कि रहने दे यही एहसास वो मुझ में
कि इक मैं ही फ़क़त महरूम हूँ उस की इनायत से

ये दुनिया से अलग रहना भी कुछ अच्छा नहीं 'ज़ाहिद'
बग़ावत है ये मंशा-ए-इलाही की इताअ'त से

शरारत कुछ उन्हीं उस की सम्त से होती नहीं तन्हा
मुझे भी फ़ितरतन कुछ उन्सियत सी है शरारत से

मुझे तो बुत-कदे ही में ख़ुदा भी मिल गया ज़ाहिद
मुसलमाँ हो गया हूँ मैं इसी कुफ़्र-ए-मोहब्बत में

ये 'अनवर' कौन सी दुनिया में खोया है कि ख़ुद उस को
सुना है आप अपनी जुस्तुजू है एक मुद्दत से
Read Full
S. Nooruddin Anwar Bhopali
न लाए देखने की ताब जल्वा देखने वाले
तमाशा बन गए ख़ुद ही तमाशा देखने वाले

सरापा तंज़ हूँ और तंज़ भी मंशा-ए-फ़ितरत का
मुझे क्या देखता है जा गुज़र जा देखने वाले

कहीं तेरी नज़र अफ़साना-ए-मूसा न बन जाए
ज़रा हुशियार रहना दिल की दुनिया देखने वाले

बहर-सूरत तुझी को देखते हैं जिस तरह देखूँ
तेरी नज़रों से बच कर तेरा जल्वा देखने वाले

अभी पर्दे तअ'य्युन के कहाँ उट्ठे हैं ऐ ग़ाफ़िल
अभी देखा ही क्या है तू ने जल्वा देखने वाले

तू अपने मंसब-ए-आली से भी ऐ काश वाक़िफ़ हो
ब-हैरत जानिब-ए-औज-ए-सुरय्या देखने वाले

कमाल-ए-हुस्न का नज़्ज़ारा ना-मुम्किन सही 'अनवर'
मगर कुछ देख ही लेते हैं जल्वा देखने वाले
Read Full
S. Nooruddin Anwar Bhopali
उस बुत की ज़बाँ पर लो 'अनवर' फिर आज तुम्हारा नाम आया
क्या जज़्ब-ए-मोहब्बत जाग उठा क्या जोश-ए-जुनूँ फिर काम आया

लो देख लो वो नमनाक आँखें लो सुन लो वो ज़ेर-ए-लब आहें
बीमार-ए-हसीं के होंटों पर क्या जानिए क्या पैग़ाम आया

उन मस्त निगाहों ने उठ कर फ़ौरन ही पिला दी थोड़ी सी
रिंदों पे जहाँ हुश्यारी का महफ़िल में कोई इल्ज़ाम आया

क्या जानिए क्यों दिल भर आया मालूम नहीं क्या बात हुई
फिर एक धुआँ सा दिल से उठा जब मेरे लबों तक जाम आया

कुछ तुझ को ख़बर भी है ज़ालिम ऐ मस्त-ए-ख़िराम-ए-बे-पर्दा
ये ख़ाक का ज़र्रा ज़र्रा क्यों दिल बन के ब-ज़ेर-ए-गाम आया

देता हूँ तसल्ली मैं 'अनवर' दिल को यही कह कह कर अक्सर
अब नामा-बर आने वाला है अब उन का कोई पैग़ाम आया
Read Full
S. Nooruddin Anwar Bhopali