Varis Kirmani

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@varis-kirmani

Varis Kirmani shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Varis Kirmani's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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Shayari
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  • Ghazal
आख़िर वो इज़्तिराब के दिन भी गुज़र गए
जब दिल-ए-हरीफ़-ए-आतिश-ए-क़हर-ओ-इताब था

जाँ दोस्तों की चारागरी से लबों पे थी
सर दुश्मनों की संग-ज़नी से अज़ाब था

दामन-ए-सगान कू-ए-मोहब्बत से तार तार
चेहरा ख़राश-ए-दस्त-ए-जुनूँ से ख़राब था

वाँ ए'तिमाद-ए-मश्क़-ए-सियासत की हद न थी
याँ ए'तिबार-ए-नाला-ए-दिल बे-हिसाब था

हर बात सूफ़ियों की तरह पेच-ओ-ख़म लिए
हर लफ़्ज़ शाइरों की तरह इंतिख़ाब था

हर जल्वा एक दफ़्तर आशोब-ए-रोज़गार
हर ग़म्ज़ा इलम-ए-फ़ित्ना-गरी की किताब था

ख़्वाबीदा हर नज़र में बनाए फ़साद-ए-ख़ल्क़
पोशीदा हर रविश में नया इंक़लाब था

आज इस ग़ज़ल में हम पे क़यामत गुज़र गई
क्या गर्मी-ए-ख़याल थी क्या इल्तिहाब था
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Varis Kirmani
ऐ सबा निकहत-ए-गेसू-ए-मुअंबर लाना
कोई तोहफ़ा गुल-ओ-नसरीन से ख़ुश-तर लाना

शबनमिस्तान-ए-मोहब्बत की हसीं राहों से
ख़ुनकी-ए-शबनम-ओ-नूर-ए-मह-ओ-अख़्तर लाना

जाँ-ब-लब हैं तिरे मुश्ताक़ सर-ए-राह-ए-हयात
दम-ए-ईसा-व-मय-ए-लाल-ओ-गुल-ए-तर लाना

इश्क़ हो मस्त-ओ-ग़ज़ल-ख़्वान-ओ-सुराही-बर-दोश
ज़िंदगी ताज़ा-ओ-सरशार-ओ-मुअत्तर लाना

दर-ख़ुर-ए-महफ़िल-ओ-शायान-ए-ख़राबात-ए-मुग़ाँ
आतिशीं मुतरिब-ओ-बेबाक नवा-गर लाना

तुझ को अंदोह-ए-असीरान-ए-क़फ़स की सौगंद
आरज़ूओं के हसीं फूल खिला कर लाना

कुश्तगान-ए-सितम-ए-दौर-ए-ख़िज़ाँ हैं हम लोग
अपने हमराह बहारों का पयम्बर लाना

इस नए दौर के शे'रों में तग़ज़्ज़ुल कम है
मेरी उफ़्ताद तबीअ'त का सुख़नवर लाना
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Varis Kirmani
खोए हुए सहरा तक ऐ बाद-ए-सबा जाना
वो ख़ाक-ए-जुनूँ मेरी आँखों से लगा जाना

अब तक कोई चिंगारी रह रह के चमकती है
ऐ क़ाफ़िला-ए-फ़र्दा ये राख उड़ा जाना

है दश्त-ए-तमन्ना में अब शाम का सन्नाटा
हाँ तेज़ क़दम रखते ऐ अहल-ए-वफ़ा जाना

हम नींद की चादर में लिपटे हुए चलते हैं
इस भेस में अब हम से मिलना हो तो आ जाना

आफ़ाक़ की सरहद पर साए से गुरेज़ाँ हैं
इन सोख़्ता-जानों को उस पार न था जाना

तुम दूर सफ़र कर के नज़दीक से लगते हो
अब पास बहुत आ के हम को न जगा जाना

क्या उस से शिकायत हो जिस शोख़ की आदत हो
कुछ बात दबा लेना कुछ आँख चुरा जाना

हम ज़िक्र-ए-गुल-ओ-बुलबुल करते हुए डरते हैं
अब सीख गया है वो हर बात का पा जाना
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Varis Kirmani
क़ज़ा जो दे तो इलाही ज़रा बदल के मुझे
मिले ये जाम इन्ही अँखड़ियों में ढल के मुझे

मैं अपने दिल के समुंदर से तिश्ना-काम आया
पुकारती रहीं मौजें उछल उछल के मुझे

निगाह जिस के लिए बे-क़रार रहती थी
सज़ा मिली है उसी रौशनी से जल के मुझे

मैं रहज़नों को कहीं और देखता ही रहा
किसी ने लूट लिया पास से निकल के मुझे

कहाँ नुजूम कहाँ रास्ते की गर्द-ए-हक़ीर
अजीब वहम हुआ तेरे साथ चल के मुझे

अब एक साया-ए-बे-ख़ानुमाँ भी साथ में है
ये क्या मिला है तिरे शहर से निकल के मुझे

वही हक़ीक़त-ए-उम्र-ए-दराज़ बन के रहे
किसी ने ख़्वाब दिए थे जो चंद पल के मुझे

कोई भी जब हदफ़-ए-ख़ंजर-ए-अदा न मिला
वो दश्त-ए-ग़म से उठा ले गए मचल के मुझे
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