बरसों तलक जहान में ढूँडा नहीं मिला
कोई भी हमको आपसे अच्छा नहीं मिला
चेहरे तो मिल गए थे कई दिल-नशीं मगर
रुख़्सार पे वो क़ाफ़ का नुक़्ता नहीं मिला
या तो जबीं नहीं मिली या ज़ुल्फ़ रह गई
सामान मेरे क़त्ल का पूरा नहीं मिला
हम पर चलाए तीर निगाहों के हुस्न ने
लेकिन कोई निशानची तुम सा नहीं मिला
इक बाग़ में गए जहाँ लाखों गुलाब थे
लेकिन लबों सा आपके ग़ुंचा नहीं मिला
मैं ग़म मनाऊँ आपके जाने का किस तरह
मैं ऐसा क़ैस हूँ जिसे सहरा नहीं मिला
मैं क़ैद में भी ज़िंदगी हँस कर गुज़ारता
जो मुझको चाहिए था वो पिंजरा नहीं मिला
हम बदनसीब लोग हैं रोने के वास्ते
छत पर हमें उमैर सा कमरा नहीं मिला
ग़म से 'अनस' रिहाई का कुल काइनात में
इक रास्ता है ख़ुदकुशी दूजा नहीं मिला
Read Full