हुआ जो आग तो ,दिल ही जला गया इक शख़्स
बना जो आब तो, सब कुछ डुबा गया इक शख़्स
नज़र का शोख था, नज़रों को हमने तीर कहा
बना जो तीर तो, दिल मे समा गया इक शख़्स
ये मेरा दुःख है कि मुझको वफ़ा की राहों में
अकेला छोड़ के चलता चला गया इक शख़्स
के उसके बाद कभी और कुछ दिखा ही नहीं
मेरी निगाह को कुछ ऐसा भा गया इक शख़्स
मैं जिस के दर पे भी जाऊं जहाँ झुकाओ सर
मेरी तमाम दुआओ में आ गया इक शख़्स
बस एक बार उसे देख देखता ही रहा
यू इक नज़र में ही अपना बना गया एक शख़्स
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