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जाने किसकी याद आई, दर्द-ए-ग़म ताज़ा हुआ - Hasan Raqim

जाने किसकी याद आई, दर्द-ए-ग़म ताज़ा हुआ
कौन था जिसका नहीं कोई भी अंदाज़ा हुआ

अपने दिल का हाल उसको मैं सुना भी ना सका
और उसके दिल का यूंही बंद दरवाज़ा हुआ

साथ तेरे, हर सफ़र आसान लगता था मुझे
और फिर हर रास्ता ही राह-ए-फ़ित्ना-ज़ा हुआ

एक दफा वो थे मिले, तो बात कुछ उनसे हुई
इश्क़ में, वरना हमें हर बार खम्याज़ा हुआ

इश्क़ करने में तो 'राकिम' मुश्किलें इतनी न थी
फिर कदम-बेज़ार हैं क्यूँ दिल ये शोला-ज़ा हुआ

- Hasan Raqim

Gham Shayari

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