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न जाने क्यूँ कभी इज़हार ए उल्फ़त कर नहीं पाते - Hasan Raqim

न जाने क्यूँ कभी इज़हार ए उल्फ़त कर नहीं पाते
तुम्हारे सामने आकर ये हिम्मत कर नहीं पाते

ज़मीं को छोड़ उड़ जाने कि ख़्वाहिश तो उन्हे भी है
मगर कुछ बात है जो पेड़ हिजरत कर नहीं पाते

ख़फ़ा हैं एक-दूजे से मगर वो जब भी मिलते हैं
ये सब कुछ भूल जाते हैं शिकायत कर नहीं पाते

मैं उनको हाल ए ग़म अपना सुना देता मगर, राक़िम
मोहब्बत करने वाले फिर मोहब्बत कर नहीं पाते

- Hasan Raqim

Izhar Shayari

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