तुझ से इतना ही है बस आस मुझे
तू बना ले तेरा लिबास मुझे
मैं नहीं वो है जिस की आस तुम्हें
तुम नहीं वो जो आए रास मुझे
दरमियाँ अपने कोई रब्त नहीं
फिर भी तू है बहुत ही खास मुझे
उसकी ये ख़ामुशी उसे शायद
देखना हो कहीं उदास मुझे
मैं मयस्सर तो था सभी को मगर
ना मिला कोई मेरे पास मुझे
मुझ को अच्छे से जानने वाले
कहते हैं एक ग़म-शनास मुझे
कर रहा मैं क्या जा रहा हूँ कहाँ
है नहीं कुछ होश-ओ-हवास मुझे
आसमाँ से कहो कि प्यार भेजे
मैं ज़मीं हूँ लगी है प्यास मुझे
बाद पढ़ने के मुझ को समझे भी
चाहिए इक सुख़न-शनास मुझे
इक ज़रा शाद ने ली जाँ "जाज़िब"
ग़म नहीं कर सका खलास मुझे
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