देखी है जिससे दुनिया वो ज़ाविया कि था
हद्द-ए-नज़र में यानी मंज़र रहा कि था
उलफ़त थी मेरे दिल में कितनी नहीं पता
ये दिल था जो समुंदर क़तरा हुआ कि था
कासा भी हाथ में था कपड़े फटे हुए
ख़ुद को फ़क़ीर यानी कहता रहा कि था
इस बार ईद पर भी ओझल नहीं हुआ
खिड़की पे चाँद मेरा दिखता रहा कि था
है कब से लापता जो उसका पता मिला
यानी है हर जगह जो है लापता कि था
क्यूँकर पता करें जब कुछ भी नहीं पता
या बे-नियाज़ होना है फ़लसफ़ा कि था
जो वक़्त हम ने खींचा माज़ी से हाल में
जो दिख रहा था फिर वो सचमुच हुआ कि था
फेंका फ़लक से हमको इक दिन ख़ुदा ने पर
जो मरहला है क्या वो पूरा हुआ कि था
वैसे उजड़ चुका है सारा चमन मगर
इक गुल था शाख़ ए दिल पर वो रह गया कि था
सब ने ख़ुदा बनाये फिर ख़ुद ख़ुदा बने
वो जो ख़ुदा था पहले वो है ख़ुदा कि था
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