इस क़दर उलझी हैं साँसें दूरियाँ कुछ भी नहीं

  - Bhargav Thaker

इस क़दर उलझी हैं साँसें दूरियाँ कुछ भी नहीं
दिल से वाबस्ता हैं दोनों दरमियाँ कुछ भी नहीं

तीखी नज़रें होंठ शीरीं है बदन नमकीन सा
लुत्फ़ यूँ सारे हैं तुझमें तल्ख़ियाँ कुछ भी नहीं

डूब के देखा है तेरी चश्म-ए-तर में बारहा
है समंदर वो मगर गहराइयाँ कुछ भी नहीं

मूँद ली आँखें तो पाया तुझको मेरे रू-ब-रू
दूरियाँ बेताबियाँ तन्हाइयाँ कुछ भी नहीं

हो मुकम्मल इश्क़ जो चाहोगे उसकी रूह को
उसके फ़ानी हुस्न की रानाइयाँ कुछ भी नहीं

ओ मुसाफ़िर जा कहीं दरयाफ़्त कर ऐसी जगह
हो मोहब्बत ही जहाँ रुस्वाइयाँ कुछ भी नहीं

  - Bhargav Thaker

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