छोड़ूँगा नहीं मुजरिम-ओ-क़ातिल उसे कहना - Saif Dehlvi

छोड़ूँगा नहीं मुजरिम-ओ-क़ातिल उसे कहना
पहना दे मुझे तौक़-ओ-सलासिल उसे कहना

ऐसे न दुखाए वो मेरा दिल उसे कहना
रुसवा न करे वो सर-ए-महफ़िल उसे कहना

लगता नहीं दुनिया में कहीं दिल उसे कहना
बिन उसके मेरा जीना है मुश्किल उसे कहना

ये राह-ए-मोहब्बत है मियाँ राह-ए-मोहब्बत
इस राह में चलते नहीं बुज़दिल उसे कहना

रब जाने दिवाना तेरा कब ख़ुद कुशी कर ले
बैठा है सुबह से लब-ए-साहिल उसे कहना

जीते जी मुझे देखने आया न वो लेकिन
हो जाए जनाज़े में वो शामिल उसे कहना

या तो वो किसी तरह से हासिल मुझे कर ले
या फिर मुझे हो जाए वो हासिल उसे कहना

जब तक हमें मंज़िल पे न ले आए वो यारो
तब तक नहीं वो रहबर-ए-मंज़िल उसे कहना

कहना कि बहुत ज़्यादा मैं मुश्किल में घिरा हूँ
आसान करे वो मेरी मुश्किल उसे कहना

ये सब दर-ओ-दीवार तो ऐसे ही सजे हैं
वो शख़्स है आराइश-ए-महफ़िल उसे कहना

दिखती हो जिसे सैफ़ ज़माने में ख़राबी
आईना रखे अपने मुक़ाबिल उसे कहना

- Saif Dehlvi
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