अजनबी शहर में अजनबी शख़्स से अपने दिल को लगाने से क्या फ़ाएदा
हिज्र की आग में उम्र भर रात दिन फूल सा दिल जलाने से क्या फ़ाएदा
रात भी जा चुकी बात भी जा चुकी बात आगे बढ़ाने से क्या फ़ाय
एदा
दोस्ती दुश्मनी में बदल जाएगी दोस्त को आज़माने से क्या फ़ाएदा
हज़रत-ए-क़ैस से आज पूछूँगा मैं फ़ुर्क़त-ए-यार में ये बताओ मुझे
ख़ाक क्यों छाननी वहशते करनी क्यों दश्त में घर बसाने से क्या फ़ाय
एदा
इश्क़ करते रहो चोट खाते रहो दर्द सहते रहो मुस्कुराते रहो
बे-सबब इश्क़ से दूर रह के भला ज़िंदगी को गँवाने से क्या फ़ाएदा
दिल की चलती हुई धड़कने रुक गईं तुम न आए मिरे आख़िरी दीद को
अब मिरी क़ब्र पर ऐसे सर पीट कर ख़ूँ के आँसू बहाने से क्या फ़ाएदा
ख़्वाब में आ गए हो तो आराम से पास बैठो मिरे मुझसे बातें करो
बीच में इस तरह से मुलाक़ात को दफ़अतन छोड़ जाने से क्या फ़ाएदा
याद आई तिरी दर्द-ए-दिल बढ़ गया दर्द-ए-दिल जब बढ़ा ज़ख़्म-ए-दिल खुल गए
ज़ख़्म-ए-दिल जब खुले चारा-गर ने कहा इनपे मरहम लगाने से क्या फ़ाएदा
इल्म से दूर हैं भूख से चूर हैं तन पे बेकस ग़रीबों के कपड़े नहीं
हुक्मराँ ये बता शहर में मस्जिदें और मन्दिर बनाने से क्या फ़ाएदा
मैंने ये सोचकर आज तक ऐ शजर दिल कभी भी किसी का दुखाया नहीं
बे-ख़ता बे-सबब रब की मख़्लूक़ का छोड़ दिल को दुखाने से क्या फ़ाएदा
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