बाटूँगा मैं ख़ुशी से शजर जा-ब-जा गुलाब
ले ले अगर गुलाब जो मुझसे मिरा गुलाब
मैंने खिला गुलाब दिया था बता गुलाब
तस्लीम कैसे कर लूँ मैं सूखा हुआ गुलाब
नादिम हूँ ज़िंदगी में तुझे दे नहीं सका
तुर्बत पे उसने मेरी ये कह कर रखा गुलाब
अल्लाह ख़ुश रखे तुझे ता उम्र हर घड़ी
देता है यूँ गुलाब को पल पल दुआ गुलाब
ख़ारों के दिल से उठने लगा देखकर धुआँ
गुलशन में जब गुलाब को मैंने दिया गुलाब
परवरदिगार ख़ैर पुराने गुलाब की
अपनी तरफ़ को खींच रहा है नया गुलाब
ग़ुर्बत ने उसको मख़मली बिस्तर नहीं दिया
काँटों पे रख के अपना बदन सो गया गुलाब
ख़ून-ए-जिगर की बूँदो को यकजा समेटकर
क़िर्तास की जबीं पे मुसव्विर बना गुलाब
शब भर चमन के छोटे से गोशे में बैठकर
आँखों से ख़ूँ के अश्क बहाता रहा गुलाब
आँखों के लब पे बस यही फ़िक़रा है हर घड़ी
हाथों में इक गुलाब के अच्छा लगा गुलाब
गुलशन में भँवरे शोर मचाते हैं चार सू
शाख़-ए-शजर पे खिलने लगा है नया गुलाब
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