फ़िराक़-ए-यार हो जिसमें विसाल-ए-यार न हो
ज़मीन-ए-दिल पे मोहब्बत का वो मज़ार न हो
गुमान-ए-यार की चादर हो दिल के सर पे पड़ी
ख़ुदा ये शहर-ए-ग़रीबाँ में शर्मसार न हो
मकीन-ए-ख़ैमा-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं हों लश्कर-ए-ख़्वाब
निगाह-ए-चश्म-ए-ख़िरद को ये ना गवार न हो
शिफ़ा-ए-कामिला तब तक न पाए ज़ख़्म-ए-जिगर
कि जब तलक दिल-ए-नादाँ को इफ़्तिख़ार न हो
ख़ुदा-ए-यकता हूँ महव-ए-दुआ मोहब्बत में
कोई भी बर सर-ए-बाज़ार संगसार न हो
लहू से लिख दूँ मोहब्बत की दास्तान शजर
मेरी वफ़ा पे अगर तुमको एतिबार न हो
ये कह के रख दिया शाने पे दिल के हाथ शजर
पलट के आएगा वो दिल तू बे क़रार न हो
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